जानने एवं पालन करने योग्य कुछ आवश्यक बातें ।। Learn and follow. - स्वामी जी महाराज.

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जानने एवं पालन करने योग्य कुछ आवश्यक बातें ।। Learn and follow.

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जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, आज हम बात करेंगे कुछ ऐसी बातों के विषय में जिसे हमारी नई पीढ़ी के लिये जानना अत्यावश्यक है । क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ये जानकर के करना हमारे लिये ही नहीं अपितु सम्पूर्ण मानव समाज के लिये जरुरी होता है ।।

क्योंकि सम्मान और धन सभी को ही चाहिए । कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जिसे सम्मान नहीं चाहिए तथा धन की आवश्यकता किसी को न हो । हमारे ऋषियों ने सभी विषयों पर अपना मन्तब्य दिया है ।।

मित्रों, आज हम कुछ ऐसे ही ज्ञानयुक्त बातों का विवेचन करेंगे । किसी तिथी को क्या खाने-पीने से जीवन में क्या परिवर्तन होता है तिथि अनुसार आहार-विहार का वर्णन हम करेंगे एवं आचार संहिता के विषय में भी आज हम यहाँ चर्चा करेंगे ।।

आचार संहिता जिसे हमारी आज की पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति को देखकर लगभग भूल चुकी है जिसे जानना उनके लिए अत्यावश्यक है । तो आप भी पढ़ें-समझें और अपने सभी निकट सम्बन्धियों तक इस ज्ञान को अवश्य ही पहुंचाएं ।।

मित्रों, प्रतिपदा तिथी को कूष्मांड अर्थात कुम्हड़ा और पेठा नहीं खाना चाहियें । क्योंकि प्रतिपदा के दिन इसका सेवन व्यक्ति अर्जित धन का नाश करता है । द्विताया को बृहती अर्थात छोटा बैंगन या कटेहरी खाना निषिद्ध माना गया है ।।

तृतिया को परवल खाने से शत्रुओं की वृद्धि होती है । चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है ।।

मित्रों, सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग होता है और शरीर का क्षय होता है । अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि एवं विवेक का नाश होता है । नवमी को लौकी गोमांस के समान त्याज्य बताया गया है ।।

एकादशी को शिम्बी अर्थात सेम खाने से, द्वादशी को पूतिका अर्थात पोई खाने से और त्रयोदशी को बैंगन खाने से सन्तान का नाश होता है । अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि को एवं रविवार के दिन, श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री-समागम से आयु नष्ट होता है ।।

मित्रों, उपरोक्त तिथियों को तिल का तेल, लाल रंग का साग और काँसे के पात्र में भोजन करना भी निषिद्ध माना गया है । रविवार के दिन अदरक भी नहीं खाना चाहिए । कार्तिक मास में बैंगन और माघ मास में मूली का त्याग कर देना चाहिए ।।
सूर्यास्त के बाद कोई भी तिलयुक्त पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए । लक्ष्मी की इच्छा रखने वाले को रात में दही और सत्तू कदापि नहीं खाना चाहिए । यह नरक के दरवाजे का मार्ग प्रशस्त करता है ।।

मित्रों, ध्यान दें, बायें हाथ से लाया गया अथवा परोसा गया अन्न, बासी भात, शराब मिला हुआ भोजन, जूठा भोजन नहीं करना चाहिए । घर के अन्य सदस्यों को न देकर अपने लिए बचाया हुआ अन्न भी खाने योग्य नहीं होता है ।।

जो भोजन लड़ाई-झगड़ा करते हुए तैयार किया गया हो अथवा जिस भोजन को किसी ने लाँघ दिया हो वो भी त्याज्य माना गया है । जिस भोजन पर रजस्वला स्त्री की दृष्टि पड़ गयी हो अथवा जिसमें बाल या कीड़े पड़ गये हों उस भोजन को भी ग्रहण नहीं करना चाहिए ।।

मित्रों, जिस भोजन पर कुत्ते की दृष्टि पड़ गयी हो अथवा जो रोकर या फिर तिरस्कारपूर्वक दिया गया हो वह अन्न राक्षसों का भाग होता है । ऐसे अन्न को ग्रहण करने वाला व्यक्ति राक्षसत्व को प्राप्त हो जाता है ।।

गाय, भैंस और बकरी के दूध के अलावा अन्य पशुओं के दूध का त्याग करना चाहिए । गाय, भैंस और बकरी का दूध भी बच्चे देने के बाद दस दिन तक का दूध सेवन नहीं करना चाहिए ये भी तमस का प्रतिक माना जाता है ।।


मित्रों, शास्त्रानुसार भैंस का दूध भी तामसी माना जाता है और ब्राह्मणों के लिये इसका भी निषेध किया गया है । भैंस का दूध, घी और मक्खन भी ब्राह्मणों के लिये वर्जित है इसे नहीं खाना चाहिए ।।

लक्ष्मी चाहने वाले व्यक्ति को भोजन और दूध को बिना ढके नहीं छोड़ना चाहिए । जूठे हाथ से अपने मस्तक का भी स्पर्श न करें क्योंकि समस्त प्राण मस्तक के ही अधीन होता है अथवा माना गया है ।।

मित्रों, बैठते समय, भोजन करते समय, सोते समय, गुरुजनों को अभिवादन करते समय और अन्य श्रेष्ठ पुरुषों कोभी प्रणाम करते समय जूते नहीं पहनने चाहिए अथवा जूते पहन कर नहीं करना चाहिए ।।

जो मैले वस्त्र धारण करता है, दाँतों को स्वच्छ नहीं रखता है, अधिक भोजन करनेवाला हो, कठोर वचन बोलने वाला और सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सोने वाला व्यक्ति यदि साक्षात् भगवान विष्णु भी हो तो उसे भी लक्ष्मी छोड़कर चली जाती है ।।
मित्रों, हमारे शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त में ही जागना एवं स्नान-पूजन-ध्यानादि करने को कहा गया है । क्योंकि उगते हुए सूर्य की किरणें, चिता का धुआँ, वृद्धा स्त्री, झाडू की धूल, पूरी तरह न जमा हुआ दही एवं कटे-फटे हुए आसन का उपयोग दीर्घायु चाहने वाले व्यक्ति को नहीं करना चाहिए ।।

अग्निशाला, गौशाला, देवता और ब्राह्मण के समीप तथा जप, स्वाध्याय और भोजन एवं जल ग्रहण करते समय जूते उतार देने चाहिए । सोना, जागना, लेटना, बैठना, खड़े रहना, घूमना, दौड़ना, कूदना, लाँघना, तैरना, विवाद करना, हँसना, बोलना, मैथुन और व्यायाम अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए ।।

मित्रों, दोनों संध्या, जप, भोजन, दंतधावन, पितृकार्य, देवकार्य, मल-मूत्र का त्याग, गुरु के समीप, दान तथा हवन-यज्ञादि के अवसरों पर जो मौन रहता है, वह स्वर्ग में जाता है । गर्भहत्या करने वाले के देखे हुए, रजस्वला स्त्री से छुए हुए, पक्षीयों के द्वारा खाये हुए और कुत्ते से छुए हुए अन्न को कदापि नहीं खाना चाहिए ।।

मित्रों, ये शास्त्रों की बातें हैं, इनका पालन पूरी श्रद्धा एवं पूर्ण निष्ठा से करना चाहिए । इन बातों का ध्यान रखकर कार्य करने वाले व्यक्ति के अन्दर एक सकारात्मक उर्जा विकसित होती है जिसे तेज कहा जाता है । और यही तेजस्विता व्यक्ति को भीड़ में भी अलग पहचान प्रदान करती है ।।
।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।

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।। नमों नारायण ।।

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