देवपूजन एवं ब्राह्मणत्व क्या है, जाती-पाती एवं इनमें मतभेद क्यों और क्या है ?।। - स्वामी जी महाराज.

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देवपूजन एवं ब्राह्मणत्व क्या है, जाती-पाती एवं इनमें मतभेद क्यों और क्या है ?।।

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देवपूजन एवं ब्राह्मणत्व क्या है, जाती-पाती एवं इनमें मतभेद क्यों और क्या है ?।। DevPujan, Brahmanatva And Jati-pati Kya Hai.
Swami Dhananjay Maharaj.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, मेरे अनुभव के आधार पर लगभग सभी हिन्दू मान्यताओं से प्रभावित व्यक्ति अपने घर में पूजा का मन्दिर रखते ही हैं । पूजा, भक्ति, साधना एवं अनुष्ठान आदि सभी का लगभग उद्देश्य एक ही होता है, घर और मन में शान्ति तथा जीवन में उन्नति । पूजा के विविध तरीके हैं, ऐसा नहीं की आप बहुत बड़ा आयोजन अथवा बहुत बड़ी रकम खर्च करके ही कर-करवा सकते हैं ।।
पूजा आप बिना कोई धन का खर्च किये भी कर सकते हैं । एक उपचार से पूजा कर सकते हैं, इसके अलावा पंचोपचार, षोडशोपचार, सहस्रोपचार, राजोपचार एवं अनन्तोपचार से देवपूजन का विधान बताया गया है । आप केवल किसी मन्दिर में जाकर हाथ जोकर प्रार्थना करते हैं तो वो आपका एकोपचार से भगवान का पूजन हो जाता है ।।



मित्रों, मन्दिर में जाते समय फुल, फूलमाला, नैवेद्य के लिए कुछ मिठाइयाँ, शिवजी के लिए एक लोटा जल आदि लेकर जाते हैं तो आपका पंचोपचार से पूजन हो जाता है । इसके आगे समन्त्रक ब्राह्मण के साथ अगर कुछ और पूजन सामग्री वस्त्रादि के साथ करते हैं तो षोडशोपचार से पूजन-अनुष्ठान हो जाता है । अब इसको बढाते चले जायेंगे तो सहस्रोपचार, राजोपचार एवं अनन्तोपचार यज्ञादि के साथ होता अथवा किया-करवाया जाता है ।। अब बात आती है, कि पूजा तो पूजा होता है फिर इतने लम्बे-चौड़े खर्च की क्या आवश्यकता है ? अक्सर आपने सुना होगा की जिसके पास पैसा नहीं होगा क्या वो पूजा नहीं कर सकता है ? परन्तु मुझे लगता है, कि ऐसे लोग या तो मुर्ख होते हैं या फिर मुर्ख बनाना चाहते हैं लोगों को । क्योंकि जिनके पास पैसा नहीं है, वो अगर पूजा करना चाहे तो उसे धन की कोई आवश्यकता नहीं है ।।
 स्वामी जी महाराज.

मित्रों, ऐसे लोग मन्दिर जा सकते हैं हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना कर सकते हैं । पूजा के कई तरीके हैं जिसके माध्यम से पूजा किया जा सकता है । परन्तु जिसकी जैसी महत्वाकांक्षा और सामर्थ्य उसके अनुसार पूजन करना चाहिये । परन्तु आप चाहते हैं, की करोड़पति बन जायें तो उसके अनुसार आपको पूजन में खर्च भी करना चाहिये । भगवान को पैसे नहीं चाहिये लेकिन आपको तो चाहिये न ?।।


पूजन के माध्यम से सामाजिक, वैचारिक तथा प्राकृतिक रूप से सभी जीवों की सेवा का विधान बनाया गया है हमारे ऋषियों द्वारा । आप गरीबों, अपंगों, लाचारों एवं माँ-बाप के साथ ही अन्य वृद्धों की सेवा एवं उनकी मदद करें, धर्म का कार्य है । परन्तु किसी एक की मदद अथवा दो-चार-दश की मदद कर सकते हैं । परन्तु धर्म के माध्यम से अनंत जीवों का कल्याण हो जाता है ।।
 स्वामी जी महाराज.
मित्रों, आज के समय में लगभग वैदिक ब्राह्मणों की कोई कद्र नहीं रह गयी है । परन्तु वैचारिक वैमस्यता से लेकर अर्थ हेतु सभी मर्यादाओं को तोड़कर आज जो कर्म किये जा रहे हैं उसको रोकने का एकमात्र उपाय वेद मन्त्रों का अधिकाधिक परायण ही है । प्रकृति को नियन्त्रित रखने का एकमात्र उपाय यज्ञ ही है दूसरा कोई नहीं । समाज में एकता एवं आपसी भाईचारा स्थापित करने के लिए आप कितने भी सख्त कानून बना लो शायद सम्भव नहीं है ।।
कुछ लोग ब्राह्मणों और ब्राह्मणवाद को ख़त्म करने की बात करते हैं । ठीक है चलो हम ब्राह्मण नहीं कहलायेंगे आपकी बात मानकर । इससे क्या परिवर्तित हो जायेगा ? कोई न कोई तो ब्राह्मण होना चाहिये जो एक मर्यादा का उपदेश करें । इस प्रकार का उपदेश की बेटा आज अगर आप किसी की बेटी को अपमानित करते हो या उसका शील भंग करने का प्रयास करते हो तो कल तुम्हारी भी बेटी होगी ।।
 स्वामी धनञ्जय जी महाराज.
मित्रों, आज अगर आप किसी का धन छिनने का प्रयास करते हो तो कल तुम्हारा भी छिनने वाला कोई पैदा हो जायेगा तब क्या करोगे ? इस प्रकृति में कुछ स्थायी है तो वो है धर्म और मर्यादा । अगर उसे तोड़ने का प्रयास करोगे तो वही तुम्हे तोड़ डालेगा और जरुर ही तोड़ेगा । क्योंकि इस संसार में जब कुछ उपर फेंका जाता है तो वो गिरकर निचे ही अर्थात हमारे सर पर ही गिरता है ।। पर्वत अथवा कुँए में आवाज करोगे तो जैसे उसकी प्रतिध्वनी लौटकर वापस आपके पास आती ही है । वैसे ही आपके ही कर्मों का फल आपको प्राप्त होता है इसमें कोई संसय नहीं है । अच्छे कर्मों का फल सद्भाग्य लेकर आता है और अपने ही बुरे कर्मों का फल दुर्भाग्य लेकर आता है । आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत् = अर्थात जो हम नहीं चाहते कि इस प्रकार का कार्य हमारे साथ हो वैसा कभी किसी दुसरे के साथ भी हमें नहीं करना चाहिये ।। मित्रों, इस प्रकार के उपदेश के बिना ज्ञान लुप्त हो जायेगा और समाज में अराजकता का फैलाव होना निश्चित हो जायेगा । जिस दिन मुगलों और अंग्रेजों का शाशन इस देश में था और जिन लोगों ने उन परिस्थितियों को झेला है उनसे कभी बात करके देख लो । स्वार्थ ही सबकुछ नहीं होता उसके उपर भी कुछ होता है । और रही बात ब्राह्मण बनने की तो कौन रोकता है आपको ब्राह्मण बनने से ?।।


इतिहास और पुराणों की बात को छोड़ दो आज प्रत्यक्ष में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो ब्राह्मण न होते हुये भी ब्राह्मणों से भी ज्यादा पूजनीय बनकर बैठे हैं, नाम आप स्वयं गिन लो । ब्राह्मण बनना आपका कर्म है ये संसार ही उर्ध्वगामी है इसीलिए तो भगवान का संसार उपर बताया जाता है की उपर वाले से डर भाई । भगवान उपर है या नहीं परन्तु आप उर्ध्वगामी बने आप समाज में श्रेष्ठ बने आपका कल्याण हो इस बात की ओर ये विषय जरुर संकेत करता है ।।
 भागवत प्रवक्ता- स्वामी जी.
मित्रों, आपका आचरण, व्यवहार, शील और तपस्या जितनी उच्च श्रेणी की होंगी उतने ही लोग आपकी ओर स्वयं ही खीचें चले आयेंगे । किसी को बुलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और ना ही टीवी में एडवरटाईजमेंट करने की जरुरत पड़ेगी । ना ही नाम के आगे पाण्डेय, द्विवेदी, चतुर्वेदी एवं अन्य सैकड़ों प्रकार के उपनाम की आवश्यकता पड़ेगी ये बताने के लिए की आप ब्राह्मण हैं या फिर नहीं हैं ।।


अगर आज सभी मर्यादित एवं तपस्यारत तथा शीलवान हो जायें तो कोई ब्राह्मण और कोई दलित रह ही नहीं जायेगा ? आज आप जिसे ब्राह्मण देख अथवा मान रहे हैं उन्हें भी अपने-आप को बताना पड़ रहा है, कि वो ब्राह्मण के कुल से हैं । शायद उन्हें भी आचरण और मर्यादा के वजह से लोग ब्राह्मण नहीं मानते । लेकिन आप उनसे जलन रखने के बजाय अगर अपने जीवन में ब्राह्मणत्व का समावेश करेंगे तो लोग आपको ब्राह्मणों से भी ज्यादा सम्मान देने लगेंगे ।।
 भागवत महापुराण कथा.

मित्रों, यहाँ तक की जो आज अपने-आप को ब्राह्मण बतलाते हैं वही ब्राह्मण आपके दर्शनों की इच्छा से आपके पास आयेंगे । मित्रों विकृत मानसिकता को हटाकर हमें अपने आप को खोजना होगा और अपने समाज के साथ ही विश्व का पथप्रदर्शक बनने का संकल्प लेना होगा । ये हमारी आपसी मतभेद का ही परिणाम है, कि चाइना जैसा देश जिसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी हमारे देवी-देवताओं के बारे में वही चाइना हमें हमारे ही देवी-देवताओं की प्रतिमायें बनाकर बेच रहा है और हम खरीद रहे हैं ।।


कुछ चन्द पैसों के लालची कुछ वोटों के लालची हमें कुछ भी बोलकर फुसला लेते हैं और हम उनके बातों के बहकावे में आकर आपस में लड़ते रहते हैं । कभी गाँव-शहर के नाम पर कभी राज्य स्तर पर तो कभी जाती-पाती के नाम पर । हम इन बहरूपियों की बातों में आकर हमारे शास्त्रों की बातों पर भी संदेह करने लगते हैं एवं उनकी बातों के आगे अपने पूर्वजों द्वारा रचित शास्त्रों कि बातों का महत्त्व भी कम आँकने लगते हैं ।।
 संस्थानं स्वामी जी महाराज.

यही वो कारण है जिससे ऐसे लोग हमें बहलाने-फुसलाने में सफल हो जाते हैं और हम सिर्फ मुर्ख बनकर रह जाते हैं । अब हम संकल्प लेकर अगर ही कोई भी कार्य करेंगे फिर चाहे वो किसी राजनीतिक दल को वोट देने कि बात हो या फिर किसी सन्त-मत-पन्थ या सम्प्रदाय वालों के संग चलने की बात हो । अब हम मुर्ख नहीं बनेंगे समाज में जागरूकता फैलायेंगे और सबका विकाश एवं सभी को सम्मान मिले ऐसे कार्य करेंगे ।। ।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।


।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।

 संस्था.
www.dhananjaymaharaj.com

2 comments:

  1. Bahut sundar swami ji. ..Namo Narayan ..

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    1. धन्यवाद जी.... नमों नारायण....

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