हम जिस घर में रहते हैं क्या वह भी मुर्दाघर बन जाता है ? - स्वामी जी महाराज.

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हम जिस घर में रहते हैं क्या वह भी मुर्दाघर बन जाता है ?

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हम जिस घर में रहते हैं क्या वह भी मुर्दाघर बन जाता है ? Hamara Ghar Bhi Murdaghar Ban Jata Hai.
जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, क्या ऐसा भी कभी हो सकता है, कि हम जिस घर में अपने पुरे परिवार तथा अपने बच्चों के साथ हँसी-ख़ुशी चहचहाते हुये अपना जीवन गुजारते हैं, वही घर एक दिन मुर्दाघर के समान हो जाय और हमारा जीवन परेशानियों के गर्त में समां जाय ।। मुझे नहीं पता ये बात कितना प्रतिशत सत्य है, परन्तु हम अपने पूर्वजों और शास्त्रों पर प्रश्नचिन्ह नहीं खड़े कर सकते । एक बार की बात है, कि हमारे एक परम मित्र हैं तथा ब्राह्मण ही हैं । उनके गाँव में काफी जमीन-जायदाद है पूर्वजों का साथ घर से बाहर परदेश में रहकर अच्छी खासी नौकरी भी करते थे ।।

मित्रों, एक दिन कि बात है, हम साथ ही बैठे थे, तभी उनका इकलौता बेटा आया । उन्होंने बेटे से कहा बेटा गुरूजी का चरण स्पर्श करो । उस बच्चे के स्पर्श से मुझे कुछ निगेटिविटी का अनुभव हुआ । मैंने शर्मा जी को कहा श्रीमान आप अपने घर में कभी-कभी वर्ष में कम से कम एक बार ही सही पूजा-हवन करवाया करो ।।
उनका जबाब बड़ा ही बेकार लगा मुझे, उन्होंने कहा - गुरूजी हम भी ब्राह्मण ही हैं । हमारे दादाजी बहुत बड़े व्याकरणाचार्य थे और फिर आपके जैसे गुरुजनों का आशीर्वाद भी तो साथ में है । हमने कहा इसके बाद भी आपको अपने घर में वर्ष में एक-दो बार कोई न कोई अनुष्ठान अवश्य करवायें ।।

मित्रों, हमने कह दिया उन्होंने सुन लिया और बात वहीँ ख़त्म । परन्तु आज आठ दिन पहले पता चला कि उनका बेटा पागल सा हो गया है । न जाने कितनी दवाईयाँ और ओझाओं का चक्कर काट-काटकर थककर अब गाँव चले गये । उनका सारा ब्राह्मणत्व ख़त्म हो गया और कोई विद्या भी काम नहीं आ रही है ।।
जब ग्रहों कि गति अथवा प्रारब्ध के चक्कर को स्वयं ईश्वर ने स्वीकार किया और भोगों को भोगा तो फिर हम तो एक इन्सान ही हैं । हमें अपने आप को देखना चाहिये न कि अपने पूर्वजों के नाम पर अपने आप को प्रस्तुत करने का प्रयत्न करना चाहिये ।।

मित्रों आचार्य चाणक्य एक दार्शनिक व्यक्ति थे और अर्थशास्त्र के महान विद्वान् थे । उन्होंने भी इस बात को सहर्ष स्वीकार किया है, कि प्रारब्ध होता है साथ ही सृष्टि कि सभी संरचनाओं को सम्मान दिया है । उन्होंने कहा है, कि अपना जीवन शांतिपूर्वक बिताने के लिए हर मनुष्य को धर्म-कर्म का अनुष्ठान करते रहना चाहिए ।।
परन्तु यज्ञ-यज्ञादि कर्म तो हर मनुष्य के लिए आवश्यक कर्म है । क्योंकि वह घर मुर्दाघर के समान हो जाता हैं, जहाँ धर्म-कर्म या यज्ञ-हवन आदि नहीं किया करवाया जाता । जहाँ वेद शास्त्रों का उच्चारण नहीं होता, विद्वानों का सम्मान नहीं होता और यज्ञ-हवन से देवताओं का पूजन नहीं होता ऐसे घर, घर न रहकर श्मशान के समान हो जाते हैं ।।

मित्रों, स्पष्ट रूप से आचार्य चाणक्य ये सन्देश दे रहे हैं, कि हम जहाँ भी जिस घर अथवा स्थान पर निवास करते हैं, वही हमारा घर बन जाता है । हमें वर्ष में एक-दो बार यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ आदि अवश्य करवाना चाहिये । वहीँ पर अपनी कुलदेवी कि तस्वीर रखकर उनकी पूजा करनी चाहिये ।।

अन्यथा वही घर-घर नहीं बल्कि मुर्दाघर बन जाता है और वहाँ भूत-प्रेतों का निवास होने लगता है । घर में नित्य कलह एवं दरिद्रता का निवास हो जाता है । ऐसा हमारे महान दार्शनिक "आचार्य चाणक्य" का मानना है और जो मेरे अनुभव में भी सत्य बैठता है । तथा आप भी अपना अनुभव अवश्य बताएं ।।

मित्रों, मैंने भूत-प्रेत कभी देखा नहीं है परन्तु शर्मा जी का बेटा अवश्य ही चिल्लाकर बोलता है, कि मैं उस लड़के का दादा हूँ जिसकी हत्या कर दी गयी थी 50 वर्ष पहले । और अब वो बोलता है, कि मुझे कोई पूछता नहीं है सब अपना पेट भरने में लगे हैं, इसलिये मैं सबको बर्बाद कर दूंगा ।।
।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें ।।

।। सभी जीवों की रक्षा करें ।।

।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।

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।। नमों नारायण ।।

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