यु. पी. वाला ठुमका लगाऊं की हीरो जैसे नाच के दिखाऊं ।। - स्वामी जी महाराज.

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यु. पी. वाला ठुमका लगाऊं की हीरो जैसे नाच के दिखाऊं ।।

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यु. पी. वाला ठुमका लगाऊं की हीरो जैसे नाच के दिखाऊं ।।  UP. Wala Thumaka Lagau Ki Hiro Jaise Nach Ke Dikhau.

जय श्रीमन्नारायण,


मित्रों, आज के समय में धर्म के प्रति लोगों की जो श्रद्धा है, वह एक विचित्र प्रकार की है । जैसे कि देखेंगे ब्राह्मणों के प्रति जो निष्ठा है, वह किस तरह की है । अक्सर कुछ लोग आपको मिलेंगे, जिनका उद्देश्य ही होता है ब्राह्मणों को नीचा दिखाना । ऐसे लोग ऐसी ही बातें सिर्फ करेंगे जिससे ब्राह्मणों को नीचा दिखाया जा सके ।। ऐसे लोगों को ब्राह्मणों के अन्दर कोई अच्छाई नजर ही नहीं आती । जबकि आप हमारे जिस किसी भी धर्मग्रन्थ को उठाकर पढ़ेंगे, उसमें आपको केवल और केवल आपको ब्राम्हणों की महिमा के विषय में लिखा मिलेगा । ब्राम्हणों की महिमा कितनी है, यह बात आपको मैं या मेरे जैसा कोई अगर बताये तो आपको लगेगा कि यह ब्राह्मणवादी हैं और स्वयं भी ब्राह्मण हैं इसलिए ब्राम्हणों की महिमा का व्याख्यान कर रहे हैं ।।

परन्तु मित्रों, बात यह बिल्कुल नहीं है, शास्त्र कहता है, कि - वेद: शिवो शिवो वेद: वेदाध्यायी सदा शिव: ।। अर्थात - वेद ही शिव है और शिव ही वेद है इसीलिये वेद पढ़ने वाला ब्राह्मण अर्थात वेदपाठी ब्राह्मण साक्षात शिव के समान होता है । आप भागवत महापुराण को ले लीजिये, उसमें नारद जी कहते हैं, कि हमारे गांव में चातुर्मास्य करने के लिए वेदवादी ब्राह्मणों की एक टोली आयी ।।

जिनकी सेवा करने हमारी माताजी गई जहां उनके साथ में हम भी गए और हम भी उन ब्राह्मणों की सेवा करने लगे । सेवा से प्रशन्न होकर उन ब्राह्मणों ने मुझे नारायण की भक्ति और इतनी शक्तियाँ दे दी, कि आप भी कथाओं में सुनते और पढ़ते हैं । भगवान भी जिन ब्राह्मणों की महिमा का गान करते नहीं थकते ।।
मित्रों, स्वयं रामजी कहते हैं, बाल्मीकि रामायण में - विप्र प्रसादात् धरणीधरोऽहम् विप्र प्रसादात् कमलावरोऽहम् । विप्र प्रसादात् अजीताजिरोऽहम् विप्र प्रसादात् मम राम नामम् ।। अर्थात - ब्राह्मणों की कृपा से ही इस संसार का संचालन मैं करता हूं, ब्राह्मणों की कृपा से ही उस लक्ष्मी के पीछे संसार बिना किसी की परवाह किए दौड़ते रहता है, वह लक्ष्मी मेरे पैरों में पड़ी रहती है ।।

किसी से भी ना जीते जाने वाले उस रावण को मैंने ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही जीत लिया और कोई भले ही जलकर के कहे परंतु मेरा राम नाम इतना विख्यात है जिसे सब कोई जपता है, वह केवल ब्राह्मणों की कृपा से ही संभव हुआ है । आइये शास्त्रों के कुछ वाक्यों के माध्यम से इस विषय को और विस्तृत रूप से समझने का प्रयास करते हैं, कि ब्राह्मण क्यों देवता माना जाता है ?।।

पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे ।
सागरे सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।।
चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः ।
सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया ।।
अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि ।
नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।।
अर्थात - पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं, वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं, वह सभी ब्राह्मणों के केवल एक दक्षिण पाद में होते हैं । चार वेद उसके मुख में होते हैं, अंग-प्रत्यंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं । इसलिये एक ब्राह्मण की पूजा करने से सभी देवों का पूजा हो जाती है । पृथ्वी में ब्राह्मण जो है विष्णु रूप है इसलिए जिसको कल्याण की इच्छा हो उनको ब्राह्मणों का अपमान तथा उनसे द्वेष नहीं करना चाहिए ।।

देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनस्तु देवता: ।
तन्मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना: तस्माद् ब्राह्मण देवता ।।

अर्थात् - सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मन्त्रों के अधीन हैं और मन्त्र ब्राह्मण के अधीन हैं इस कारण ब्राह्मण देवता माना जाता हैं ।।

जन्मना ब्राम्हणो ज्ञेय: संस्कारैर्द्विज उच्चते ।
विद्यया याति विप्रत्वं, त्रिभि:श्रोत्रिय लक्षणम् ।।
ब्राम्हण के बालक को जन्म से ही ब्राम्हण समझना चाहिए । संस्कारों से "द्विज" संज्ञा होती है तथा विद्याध्ययन से "विप्र" नाम धारण करता है । जो वेद-मन्त्र तथा पुराणों से शुद्ध होकर तीर्थस्नानादि के कारण और भी पवित्र हो जाता है, वह ब्राम्हण परम पूजनीय माना जाता है ।।

पुराणकथको नित्यं, धर्माख्यानस्य सन्तति: ।
अस्यैव दर्शनान्नित्यं, अश्वमेधादिजं फलम् ।।

अर्थात - जिसके हृदय में गुरु, देवता, माता-पिता और अतिथि के प्रति भक्ति है । जो दूसरों को भी भक्तिमार्ग पर अग्रसर करता रहता है, जो सदा पुराणों की कथा और धर्म का प्रचार करता है ऐसे ब्राम्हण के दर्शन से ही अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है ।।

पितामह भीष्म जी ने पुलस्त्य जी से पूछा - गुरुवर! मनुष्य को देवत्व, सुख, राज्य, धन, यश, विजय, भोग, आरोग्य, आयु, विद्या, लक्ष्मी, पुत्र, बन्धुवर्ग एवं सब प्रकार के मंगलों की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? यह बताने की कृपा करें ।।
पुलस्त्यजी ने कहा - राजन! इस पृथ्वी पर ब्राम्हण सदा ही विद्या आदि गुणों से युक्त और श्रीसम्पन्न होता है । तीनों लोकों और प्रत्येक युग में विप्रदेव नित्य पवित्र माने गये हैं । ब्राम्हण देवताओं का भी देवता होता है । संसार में उसके समान कोई दूसरा नहीं होता है । वह साक्षात धर्म की मूर्ति होता है और सबको मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करवाने वाला है । ब्राम्हण सब लोगों का गुरु, पूज्य और तीर्थस्वरुप मनुष्य के वेष में इश्वर ही होता है ।।

पूर्वकाल में नारदजी ने ब्रम्हाजी से पूछा था - ब्रम्हन्! किसकी पूजा करने पर भगवान लक्ष्मीपति प्रसन्न होते हैं?" ब्रह्माजी ने कहा - जिस पर ब्राम्हण प्रसन्न होते हैं, उसपर भगवान श्रीमन्नारायण श्रीविष्णुजी भी प्रसन्न हो जाते हैं । अत: ब्राह्मणों की सेवा करने वाला मनुष्य निश्चित ही परब्रम्ह परमात्मा को प्राप्त होता है । एक ब्राम्हण के शरीर में सदा ही श्रीविष्णु का निवास होता है ।।

जो दान, मान और सेवा आदि के द्वारा प्रतिदिन ब्राम्हणों की पूजा करते हैं, उनके द्वारा मानों शास्त्रीय पद्धति से उत्तम दक्षिणा युक्त सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान हो जाता है । जिसके घरपर आया हुआ ब्राम्हण निराश नही लौटता, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है । पवित्र देशकाल में सुपात्र ब्राम्हण को जो धन दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है ।।

ऐसा दान, दानदाता के जन्म जन्मान्तरों में फल देता है, उनकी पूजा करने वाला कभी दरिद्र, दुखी और रोगी नहीं होता है । जिस घर के आँगन में ब्राम्हणों की चरणधूलि पड़े वह घर पवित्र हो जाते हैं तथा वह तीर्थों के समान हो जाते हैं ।।
न विप्रपादोदककर्दमानि, न वेदशास्त्रप्रतिघोषितानि ।।
स्वाहास्नधास्वस्तिविवर्जितानि, श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि ।।

अर्थात - जहाँ ब्राम्हणों का चरणोदक नहीं गिरता, जहाँ वेद शास्त्र की गर्जना नहीं होती, जहाँ स्वाहा, स्वधा, स्वस्ति और मंगल शब्दों का उच्चारण नहीं होता है । वह चाहे स्वर्ग के समान भवन भी हो तब भी वह श्मशान के समान ही है । भीष्मजी! पूर्वकाल में विष्णु भगवान के मुख से ब्राम्हण, बाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुयी थी ।।

पितृयज्ञ (श्राद्ध-तर्पण), विवाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म और समस्त मांगलिक कार्यों में सदा उत्तम माने गये हैं । ब्राम्हण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य ग्रहण करते हैं । ब्राम्हण के बिना दान, होम, तर्पण आदि सब निष्फल होते हैं । जहाँ ब्राम्हणों को भोजन नहीं करवाया जाता, वहाँ असुर, प्रेत, दैत्य और राक्षस भोजन करते हैं । ब्राम्हणों को देखकर श्रद्धापूर्वक उनको प्रणाम करना चाहिए ।।

ब्राह्मणों के आशीर्वाद से मनुष्य की आयु बढती है, वह चिरंजीवी होता है । ब्राम्हणों को देखकर भी प्रणाम न करने से, उनसे द्वेष करने से तथा उनके प्रति अश्रद्धा रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है, धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है ।।
कवच अभेद्य विप्र गुरु पूजा । एहिसम विजय उपाय न दूजा ।।

नमो ब्रम्हण्यदेवाय गोब्राम्हणहिताय च ।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमोनमः ।।

जगत के पालनहार गौ, ब्राम्हणों के रक्षक भगवान श्रीकृष्ण कोटिशः वन्दना करते हुये कहते हैं । जिनके चरणारविन्दों को परमेश्वर अपने वक्षस्थल पर धारण करते हैं, उन ब्राम्हणों के पावन चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम है । ब्राह्मण जप से पैदा हुई शक्ति का नाम है, ब्राह्मण त्याग से जन्मी भक्ति का धाम है । ब्राह्मण ज्ञान के दीप जलाने का नाम है, ब्राह्मण विद्या का प्रकाश फैलाने का काम है ।।

मित्रों, अभिप्राय यह है, कि जो श्रीमान इस गाने को (यु. पी. वाला ठुमका लगाऊं की हीरो जैसे नाच के दिखाऊं।) गा रहे हैं और जिस तरह की पोशाक पहनकर गा रहे हैं, उस तरह का पोशाक पहन कर कोई सच में यु.पी. का देहाती छोकरा आ जाय तो जो लोग उस चलचित्र को मजे लेकर देख रहे हैं, वही लोग उसे देखकर हसेंगे ।।
ये तो चलो देहाती समझकर शायद लोग हँसे, परन्तु ब्राह्मणों को इस तरह के पोशाक में देखकर बच्चों को तो छोड़ो, हमने वेल एजुकेटेड लोगों को हँसते देखा है । यह किस प्रकार की ब्राह्मणों का सम्मान और ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा है ? अगर कोई ब्राह्मण कार पर चले तो लोग उसे एलियन की तरह देखते हैं । अगर कोई ब्राह्मण अच्छा वाला मोबाइल रखे तो लोग ईर्ष्या भरी दृष्टि से देखते हैं । इस श्रद्धा के प्रकार को समझ पाना मुश्किल है, आपको कदाचित् समझ में आ जाये तो कृपया हमें भी अवश्य बतायें ।।।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें ।।

।। सभी जीवों की रक्षा करें ।।

।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।

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।। नमों नारायण ।।

2 comments:

  1. जय श्रीमन्नारायण​ आदरणीय
    बहुत सुंदर लेख

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